धारा- भारतीय संविधान के अनुसार समस्त धाराएं और उनके अंतर्गत आने वाली सजा का प्रावधान, भारतीय दंड संहिता, 1860

धारा भारतीय संविधान के अनुसार समस्त धाराएं और उनके अंतर्गत आने वाली सजा का प्रावधान, भारतीय दंड संहिता, 1860

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(धारा) _ 1834 में भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिशों पर आई.पी.सी. 1860 को लागू किया गया। यह कोड ब्रिटिश शासन के दौरान प्रभावी होते हुए उस समय के अंग्रेजों के लिए बनाया गया था। भारत के विभाजन के बाद, यह कानून स्वतंत्र भारत और पाकिस्तान द्वारा अपनाया गया। जम्मू और कश्मीर में लागू रणबीर दंड संहिता भी इसी आधार पर आधारित है। आई.पी.सी. में कई बार संशोधन किया गया है और अब इसमें विभिन्न आपराधिक प्रावधानों को पूरक बनाया गया है। वर्तमान में, इसमें 23 अध्याय और कुल 511 खंड हैं, जो भारत के सभी नागरिकों के लिए लागू है।

भारतीय दंड संहिता, 1860

1860 का अधिनियम 45

  • 6 अक्टूबर 1860 को राजपत्र 45 में प्रकाशित
  • 6 अक्टूबर 1860 को सहमति दी गई
  • 6 अक्टूबर 1860 को शुरू हुआ
  • 7 फरवरी 2022 को इस दस्तावेज़ का संस्करण है।]
  1. [ 1 जनवरी 2006 को आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2005 (2006 का अधिनियम 2) द्वारा संशोधित ]
  2. [ 11 अगस्त 2018 को आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 (2018 का अधिनियम 22) द्वारा संशोधित ]

धारा 1 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 1 के अनुसार, यह अधिनियम भारतीय दण्ड संहिता के रूप में जाना जाएगा, और इसका प्रभाव सम्पूर्ण भारत पर होगा, जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर।

और इसमें देश में अपराधों के विविध आदान-प्रदान, दंडित अवमानना, और दंड का प्रावधानिक क्रम विस्तार से विवरणित किया गया है। इससे प्राथमिक रूप से दंडी अवमाननाओं के खिलाफ कार्रवाई किया जाएगा और समाज की सुरक्षा और न्याय को सुनिश्चित किया जाएगा। इस धारा के तहत, अपराधिक अवमाननाओं के लिए विभिन्न प्रकार के दंड प्रावधान हैं, जिनमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता की उल्लंघना, सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ अपराध, और राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ अपराध शामिल हैं। इस धारा के प्रावधानों के अनुसार, अपराधियों को उचित दंड और सजा का प्राप्त होना चाहिए, जिससे समाज में कानून और व्यवस्था का पालन हो सके।

धारा 2 का विवरण

धारा 2 के अनुसार, भारतीय दंड संहिता में हर व्यक्ति को इस संहिता के उपबन्धों के विपरीत किए गए हर कार्य या लोप के लिए जो कारण हो, और जिसमें वह भारतीय क्षेत्र में दोषी हो, उसके खिलाफ यह संहिता लागू होगी, अन्यथा नहीं।

इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति भारत में किसी भी अपराध का दोषी पाया जाता है, तो उसे भारतीय दंड संहिता के तहत सजा दी जाएगी। इससे न्यायिक प्रक्रिया और अपराधिक नियंत्रण को सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है। इससे समाज में विश्वास और अनुशासन बना रहता है, जिससे अपराधों को रोका जा सकता है और न्याय के प्रति लोगों में विश्वास बना रहता है। इसके अलावा, यह संहिता समाज के हर व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करती है। भारतीय दंड संहिता के इस प्रावधान से सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से भी बड़ा महत्व है। यह उपयोगकर्ताओं को निर्दोषता की रक्षा प्रदान करता है और अपराधियों को सजा दिलाने में मदद करता है। इसके अलावा, यह संहिता समाज के न्यायिक और कानूनी ढांचे को मजबूत करता है, जिससे अपराधों को रोकने में सहायता मिलती है।

धारा 3 का विवरण

धारा 3 के अनुसार, भारतीय दंड संहिता में उल्लिखित है कि यदि कोई व्यक्ति भारतीय कानूनों के तहत दोषी पाया जाता है, तो उसे उसी प्रकार की सजा मिलेगी, चाहे वह अपराध भारत के अलावा कहीं भी किया गया हो। इससे स्पष्ट होता है कि किसी भी अपराध को व्यक्तिगत रूप से नहीं, बल्कि कानूनी दृष्टिकोण से देखा जाएगा। इस प्रावधान से भारतीय कानून के पालन पर जोर दिया जाता है और अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की गारंटी होती है।

इस प्रावधान से सामजिक न्याय और विश्वास का संरक्षण होता है, क्योंकि यह दिखाता है कि कोई भी अपराध बिना किसी अन्याय के बराबर ही माना जाएगा, चाहे वह भारत के अलावा कहीं भी हो। यह भी साबित करता है कि भारतीय कानूनी प्रणाली व्यापक और प्रभावी है, जो कि देश की सुरक्षा और न्याय को सुनिश्चित करती है।

धारा 4 का विवरण

धारा 4 में भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों का विवरण दिया गया है। इसके अनुसार, इस संहिता के अधीन निर्दिष्ट अपराध के लिए दंड लागू होता है, जो निम्नलिखित मामलों में शामिल होते हैं:

  1. भारत के बाहर या विदेश में किसी भारतीय नागरिक द्वारा किया गया अपराध।
  2. भारत में पंजीकृत किसी पोत या विमान पर, चाहे वह कहीं भी हो, किसी व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध।

धारा में उल्लिखित “अपराध” के अंतर्गत उन सभी क्रियाएँ आती हैं जो यदि भारत में की जातीं, तो उन्हें इस संहिता के तहत दंडनीय माना जाता।

इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति या नागरिक भारत के बाहर जाकर किसी अपराध का भागीदार बनता है, तो भी उसे भारतीय दंड संहिता के तहत सजा होगी। उसे अपराध की सजा भारत में ही होगी, जैसे कि अगर वह अपराध भारत में ही किया गया होता। इससे भारतीय कानून का अधीन हर व्यक्ति को विश्वास और विश्वास का परिपूर्ण संवेदनशीलता बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है।

धारा 5 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 5 के अनुसार, इस अधिनियम में कोई भी विधि भारत सरकार की सेवा में काम करने वाले अधिकारियों, सैनिकों, नौसेना के सदस्यों, या वायु सेना के सदस्यों द्वारा किये गए विद्रोह और परित्याग के लिए दण्ड लगाने वाले किसी भी अधिनियम के प्रावधानों या किसी विशेष या स्थानीय कानून के प्रावधानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

इसका मतलब है कि भारतीय सरकार के कर्मचारी, सशस्त्र बलों के सदस्य, या फिर वायु सेना के सदस्यों द्वारा अपने कार्यों में जो भी दण्ड लगाया जाए, उससे वे अधिनियम के प्रावधानों या किसी अन्य कानून के प्रावधानों के अधीन नहीं आएंगे। यह सामाजिक और नैतिक दृष्टि से सरकारी अधिकारियों और सेना के सदस्यों को विशेष रक्षा देने का उद्देश्य रखता है, ताकि वे अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन कर सकें बिना किसी भय के किसी प्रतिकूल प्रभाव का सामना करने के।

इस प्रावधान के माध्यम से, सरकारी अधिकारियों और सशस्त्र बलों के सदस्यों को स्वतंत्रता मिलती है कि वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें बिना किसी भय के किसी नियामक अथवा कानून के आवाज या प्रतिकूल प्रभाव का धमका सामना करने के। इससे भारतीय संविधान में स्थापित सरकारी अधिकारियों और सशस्त्र बलों के सदस्यों के अधिकारों का सम्मान किया जाता है और उन्हें निष्ठापूर्वक कार्य करने की स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।

धारा 6 का विवरण

धारा 6 के अनुसार, भारतीय दंड संहिता में सभी अपराधों की परिभाषा, दण्ड उपबंध, और उनके विविध तरीके को साधारण अपवाद शीर्षक वाले अध्याय में दिए गए अपवादों के अधीन समझा जाएगा, चाहे वे अपवाद किसी भी परिभाषा, दण्ड उपबंध, या दृष्टांत में दोहराए गए हों या न हों।

इसका मतलब है कि अपराधों की परिभाषा और उनके दण्ड की प्रावधानिकता के संबंध में किसी भी अविकल्पितता को दूर किया जाएगा और सभी संबंधित तथ्यों को उचित रूप से समझाया जाएगा। इससे संहिता का प्रयोग और न्यायिक प्रक्रिया स्पष्ट और निष्पक्ष होगा। इस तरह से, यह धारा संविधान में स्थित सामान्य न्याय और समानता के तत्वों को बनाए रखने का प्रयास करती है और दंड संहिता की सामान्य धाराओं को समझने और उनके प्रावधानों को उचित रूप से लागू करने में मदद करती है। इससे अपराधियों और न्यायिक प्रक्रिया के प्रति सामान्य जनता का भरोसा और विश्वास भी बढ़ाया जाता है।

धारा 7 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 7 में यह विवरण है कि इस संहिता के किसी भी भाग में स्पष्टीकरण किया गया है, तो वही स्पष्टीकरण हर भाग में प्रयोग किया जाएगा।

इसका अर्थ है कि धारा 7 के तहत, जो कोई भी वाक्यांश, प्रावधान या स्पष्टीकरण है, वह इस संहिता के अन्य किसी भाग में उसी रूप में प्रयोग होगा, जिस रूप में उसे उपयोग किया गया है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी विधान या प्रावधान एक ही तरीके से समझा जाता है और उसका अनुपालन किया जाता है, चाहे वह किसी भी भाग में हो।

इससे संविधानिक तौर पर सुनिश्चित होता है कि दंड संहिता के विभिन्न भागों में कोई भी विवाद नहीं होता है और न्यायिक प्रक्रिया में संरेखितता बनी रहती है। इससे कानून का अधिनिर्णय स्पष्ट और निष्पक्ष होता है, जिससे न्याय की सुरक्षा और प्रणाली की प्रतिष्ठा बनी रहती है।

धारा 8 का विवरण

इससे स्पष्ट है कि धारा 8 के अनुसार, किसी भी कानूनी प्रावधान में पुलिंग वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो उसका अर्थ है कि वह सभी व्यक्तियों के लिए लागू होता है, चाहे वे पुरुष हों या महिलाएं।

इस तरह, किसी भी कानूनी प्रावधान का पुलिंग वाचक शब्दों के उपयोग से कोई अन्याय नहीं होता है और समानता का सिद्धांत पालन किया जाता है। इससे समाज में नारी की सम्मान और सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है।

इससे समाज में समानता और न्याय की भावना को मजबूती मिलती है, जिससे भारतीय समाज की सामाजिक संरचना में सुधार होता है। धारा 8 की यह विधि नारी अधिकारों की सुरक्षा और सम्मान को प्राथमिकता देती है, जो समाज में सामंजस्य और उत्तरदायित्व का विकास करती है।

धारा 9 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 9 के अनुसार, एकवचन द्योतक शब्दों के अंतर्गत बहुवचन आता है, और बहुवचन द्योतक शब्दों के अंतर्गत एकवचन आता है, जब तक कि संदर्भ से उल्लिखित प्रतीत न हो।

यह विधान यह स्पष्ट करता है कि किसी भी कानूनी विधि में, विशेष रूप से धंधों, दण्डों, और शासन के अधिकारों के संदर्भ में, भाषा के उपयोग में ऐसा अंतरिक्ष देना चाहिए जो संदर्भ के अनुरूप हो। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी कानूनी प्रावधान का सही मतलब समझने में कोई कंफ्यूजन नहीं हो।

इस तरह, यह विधान सुनिश्चित करता है कि किसी भी कानूनी निर्णय को समझने और उसके प्रावधानों को अपनाने में कोई असुविधा नहीं होती है। इसके माध्यम से कानून की व्याख्या और प्रयोग में सहजता और स्पष्टता बनी रहती है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में स्थिरता और समानता का पालन होता है।

धारा 10 का विवरण

इस प्रावधान से यह स्पष्ट होता है कि किसी भी कानूनी प्रावधान का अधिकारिक अर्थ “पुरुष” या “स्त्री” को सीमित नहीं करता है, बल्कि यह सभी लोगों को समान रूप से संज्ञान में लेता है। इससे समाज में समानता और न्याय की भावना को मजबूती मिलती है, जो एक समर्थ और उत्तरदायित्वपूर्ण समाज की नींव होती है।

इस प्रकार, धारा 10 व्यक्तिगत और सामाजिक समानता के मूल्यों को प्रोत्साहित करती है। यह न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि समाज के संरचनात्मक स्तर पर भी समानता और न्याय के प्रति समर्थ है। इससे एक समृद्ध और समर्थ समाज का निर्माण होता है जो समस्त अधिकारों का पालन करता है और सभी व्यक्तियों को समान दर्जे और अवसर प्रदान करता है।

इससे यह साबित होता है कि समाज में स्त्री और पुरुषों के बीच किसी भी प्रकार के भेदभाव को दूर किया जाता है और सभी को बराबरी का अधिकार और समानता का अनुभव करने का मौका मिलता है। धारा 10 सामाजिक समृद्धि और उन्नति की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान करती है, जिससे समाज की सामूहिक और आत्मिक विकास की प्रक्रिया में सहयोग मिलता है।

धारा 11 का विवरण

इसका अर्थ है कि धारा 11 के अनुसार, “व्यक्ति” शब्द का उपयोग सभी व्यक्तियों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, चाहे वे एकल हों या किसी संगठन के सदस्य हों। इससे संविधानिक रूप से समय की बचत होती है और संज्ञान में आसानी होती है कि किसी भी नियम या प्रावधान का लागू होना किस भी व्यक्ति या समूह के लिए है।

इस प्रावधान से यह स्पष्ट होता है कि धारा 11 के अनुसार, किसी भी निगम, संगठन, या समूह को भी “व्यक्ति” के रूप में देखा जाता है, जिससे समाज में सामाजिक और कानूनी समानता का पालन होता है। इसके द्वारा, किसी भी निगम या संगठन के द्वारा किए गए कार्यों और निर्णयों को भी व्यक्तिगत दर्जे में देखा जाता है।

धारा 11 के अनुसार, यह भी स्पष्ट होता है कि संगठन या समूह के सभी सदस्यों को उनके व्यक्तिगत अधिकारों और कर्तव्यों का सम्मान किया जाना चाहिए। इससे उन्हें संविधानिक और कानूनी सुरक्षा प्राप्त होती है और उनके अधिकारों का उपयोग करने की स्वतंत्रता होती है।

धारा 12 का विवरण

इस धारा के अनुसार, जनता या सामान्य जन का कोई भी व्यक्ति या समुदाय जो कि सामान्य लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, “जनता / सामान्य जन” शब्द के अंतर्गत आता है। इससे समाज में सामान्य लोगों के अधिकारों और हितों की संरक्षा होती है और उनके प्रति न्याय और समानता की भावना को प्रोत्साहित किया जाता है।

धारा 12 के अनुसार, समाज में किसी भी व्यक्ति या समूह को “जनता / सामान्य जन” के रूप में सम्मानित किया जाता है, जिससे कि सभी को समान रूप से कानूनी संरक्षण और स्वतंत्रता का लाभ मिले। इसके माध्यम से, समाज की सामाजिक संरचना में समानता और न्याय के मूल्यों का पालन होता है, जो सामाजिक और नैतिक विकास की प्रक्रिया को समर्थ बनाता है।

धारा 13 का विवरण

टीवी-विधि अनुकूलन आदेश, 1950 के अनुसार, संबंधित नियमों और प्रावधानों को संघ और राज्यों में लागू किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि संविधान के अनुसार बनाए गए कानूनों का सही और निष्पक्ष अनुमान होता है और उन्हें सम्पूर्ण देश में लागू किया जाता है।

इस अनुकूलन के माध्यम से, संविधानिक विधानों को समझना और उनके अनुपालन में सुधार करना आसान होता है। यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी प्रावधानों का उपयोग न्यायिक तरीके से हो और समाज में सामाजिक न्याय और समानता की भावना को बढ़ावा दिया जाता है।

धारा 14 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 14 के अनुसार, “सरकार का सेवक” शब्द सरकार के प्राधिकार के द्वारा या अधीन, भारत के भीतर उस रूप में बनाए गए, नियुक्त या नियोजित किए गए किसी भी अधिकारी या सेवक के द्योतक हैं।

यानी कि धारा 14 द्वारा व्याख्या किया जाता है कि जो कोई भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी सरकारी प्राधिकार के अधीन नियुक्त या नियोजित होता है, उसे “सरकार का सेवक” कहा जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि इस व्यक्ति को सरकार की प्रतिनिधित्व की भूमिका में माना जाता है, जिसमें उसे अपने कार्यों के लिए जिम्मेदारी और जायज़त मिलती है।

धारा 15 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 15 के अनुसार ।ट–विधि अनुकूलन आदेश, 1937 द्वारा निरसित ।

धारा 16 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 16 के अनुसार ।ट–भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा निरसित ।

धारा 17 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 17 के अनुसार सरकार केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य की सरकार का द्योतक है। इससे यह स्पष्ट होता है कि धारा 17 के अनुसार, सरकार केंद्रीय या राज्य सरकार के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है, जिससे कि संबंधित सरकार के अधिकारों और प्राधिकारों का उल्लेख होता है।

धारा 17 के अनुसार, सरकार का यह परिभाषण सांविधानिक स्तर पर स्थापित करता है, जिससे व्यावसायिक और कानूनी प्रक्रियाओं में सरकारी संगठनों और अधिकारियों की भूमिका और प्राधिकरण का स्पष्टीकरण होता है।

इससे स्पष्ट होता है कि सरकारी निर्णयों और कार्यवाही में संबंधित सरकारी अधिकारियों या संगठनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है, और उनके द्वारा लिए गए निर्णयों का समान रूप से पालन किया जाना चाहिए।

धारा 18 का विवरण

धारा 18 क्या है यदि हम आपको साधारण भाषा में कहे तो आईपीसी की धारा 18 भारत को परिभाषित करती है, मतलब यह है कि आईपीसी के अनुसार भारत क्या है अगस्त 2019 से पहले भारत का मतलब था, जम्मू कश्मीर राज्य को छोड़कर भारत लेकिन अब इस क्षेत्र का मतलब हो गया है जम्मू कश्मीर में पूरा भारत आपको याद दिला दे कि अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने जाने के बाद क्षेत्र 18 का मतलब ही बदल गया है.

धारा 19 का विवरण

सार, “न्यायाधीश” शब्द न केवल उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जो पद रूप से न्यायाधीश कहलाता है, बल्कि यह हर व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जो किसी कानूनी कार्यवाही में, चाहे वह सिविल हो या आपराधिक, अंतिम निर्णय या ऐसा निर्णय, जो उसके विरुद्ध अपील न होने पर अंतिम हो जाए या ऐसा निर्णय, जो किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किए जाने पर अंतिम हो जाए, देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, अथवा जो उस व्यक्ति निकाय में से एक हो, जो व्यक्ति निकाय ऐसा निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो।

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