महाभारत महाकाव्य के पात्रों की सूची और उनके कार्य / एक दूसरे से संबंध #9

महाभारत महाकाव्य के पात्रों की सूची और उनके कार्य एक दूसरे से संबंध

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महाभारत प्राचीन भारत के दो प्रमुख संस्कृत महाकाव्यों में से एक है, इसकी रचना ऋषि व्यास ने की थी। महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में: बासुदेव श्री कृष्ण; पांडव- युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव, उनकी पत्नी द्रौपदी के साथ; और कौरव (जो सौ भाई थे), सबसे बड़े भाई दुर्योधन के नेतृत्व में। सबसे महत्वपूर्ण अन्य पात्रों में भीष्म, कर्ण, द्रोणाचार्य, शकुनि, धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती शामिल हैं। कुछ महत्वपूर्ण अतिरिक्त पात्रों में बलराम, सुभद्रा, विदुर, अभिमन्यु, कृपाचार्य, पांडु, सत्यवती, अश्वत्थामा और अम्बा शामिल हैं। महाकाव्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले देवताओं में विष्णु, ब्रह्मा, शिव, गंगा, इंद्र, सूर्य और यम शामिल हैं।

बासुदेव श्री कृष्णा (पात्र महाभारत)

श्री कृष्ण– बासुदेव और देवकी की 8वीं संतान और भगवान विष्णु के 8वें अवतार लेकर भगवान श्री कृष्ण ने धरती पर अवतार लिया था जिन्होंने अपने दुष्ट मामा कंस का वध किया था। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध के प्रारंभ में गीता उपदेश दिया था। श्री कृष्ण की 8 पत्नियां थीं, यथा रुक्मणि, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। श्री कृष्ण के लगभग 80 पुत्र थे। उनमें से खास के नाम हैं- प्रद्युम्न, साम्ब, भानु, सुबाहू आदि। साम्ब के कारण ही कृष्ण कुल का नाश हो गया था।
साम्ब ने दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से विवाह किया था

भीष्म (पात्र महाभारत)

भीष्म – 8

भीष्म, महाभारत के एक महान और प्रमुख पात्र हैं, जिनका प्राचीन नाम देवव्रत था। वे राजा शांतनु और गंगा के पुत्र थे। जब देवव्रत ने अपने पिता की आज्ञा के लिए ब्रह्मचारी रहने का व्रत लिया, तो उन्हें “भीष्म” के नाम से पुकारा जाने लगा। यही कारण है कि उन्हें भीष्म के नाम से जाना जाता है।

भीष्म की माता का नाम गंगा था, जो कि नदी गंगा के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनके पिता की दूसरी पत्नी का नाम सत्यवती था, जो निषाद राजा विराट की कन्या थीं। सत्यवती के साथ विवाह के बाद, भीष्म के जन्म से पहले ही उनकी माँ ने वरदान माँगा था कि उनके पुत्र को अपने ब्रह्मचारिण जीवन में किसी प्रकार की संभावना न हो। इसी कारण भीष्म का जीवन संग्राम और धर्म के प्रति समर्पण से भरा रहा।

अर्जुन (पात्र महाभारत)

अर्जुन- राजा पांडु के धर्मपुत्र और देवराज इंद्र के पुत्र अर्जुन की माता का नाम कुंती था। भगवान श्रीकृष्ण के सखा और परम भक्त और उनकी ही बहन सुभद्रा के पति और भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के बीच युद्ध में अर्जुन को ही गीता का उपदेश दिया था। द्रौपदी से जन्मे अर्जुन के पुत्र का नाम श्रुतकर्मा था। द्रौपदी के अलावा अर्जुन की सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा नामक 3 और पत्नियां थीं। सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावत, चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्रों का जन्म हुआ।

युधिष्ठिर (पात्र महाभारत)

युधिष्ठिर- धर्मराज और कुंती के पुत्र युधिष्ठिर के धर्मपिता पांडु थे। ये सत्य वचन बोलने के लिए प्रसिद्ध थे। द्रौपदी से जन्मे युधिष्ठिर के पुत्र का नाम प्रतिविंध्य था। युधिष्ठिर की दूसरी पत्नी देविका थी। देविका से धौधेय नाम का पुत्र जन्मा।

युधिष्ठिर को धर्मराज भी कहा जाता है, और वे महाभारत के पांडव सम्राट थे। उनके पिता का नाम राजा पांडु था, जिन्होंने धर्म का पालन करते हुए अपने बच्चों को सिखाया। युधिष्ठिर के प्रमुख पुत्रों में प्रतिविंध्य और धौधेय शामिल हैं, जो उनकी पत्नियों से जन्मे थे।

द्रौपदी से उनके पुत्र के नाम प्रतिविंध्य था। प्रतिविंध्य का महत्वपूर्ण भूमिका महाभारत में आयी है, जहां उन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्यों में भाग लिया।

उनकी दूसरी पत्नी देविका से धौधेय नाम का पुत्र जन्मा। धौधेय भी महाभारत के कई प्रमुख किरदारों में से एक हैं और उनके युद्ध में भाग लेने और धर्म की रक्षा में समर्थ्य के लिए प्रसिद्ध हैं।

भीम (पात्र महाभारत)

भीम- पवनदेव और कुंती के पुत्र भीम के धर्मपिता पांडु थे। भीम में 10 हजार हाथियों का बल था। युद्ध में इन्होंने ही सभी कौरवों का वध कर दिया था। द्रौपदी से जन्मे भीमसेन से उत्पन्न पुत्र का नाम सुतसोम था। द्रौपदी के अलावा भीम की हिडिम्बा और बलंधरा नामक 2 और पत्नियां थीं। हिडिम्बा से घटोत्कच और बलंधरा से सर्वंग का जन्म हुआ।

नकुल (पात्र महाभारत)

नकुल- अश्विन कुमार और माद्री के पुत्र नकुल के धर्मपिता पांडु थे। मद्रदेश के राजा शल्य नकुल- सहदेव के सगे मामा थे। नकुल ने अश्व विद्या और चिकित्सा में भी निपुणता हासिल की थी। द्रौपदी से उनके शतानीक नाम के एक पुत्र भी हुए। द्रौपदी के अलावा नकुल की करेणुमती नामक पत्नी थीं। करेणुमती से निरमित्र नामक पुत्र का जन्म हुआ। करेणुमती चेदिराज की राजकुमारी थीं।

सहदेव (पात्र महाभारत)

सहदेव- अश्विनकुमार और माद्री के पुत्र सहदेव के धर्मपिता पांडु थे। सहदेव पशुपालन शास्त्र, चिकित्सा और ज्योतिष शास्त्र में दक्ष होने के साथ ही त्रिकालदर्शी भी थे। सहदेव की कुल 4 पत्नियां थीं- द्रौपदी, विजया, भानुमति और जरासंध की कन्या। द्रौपदी से श्रुतकर्मा, विजया से सुहोत्र पुत्र की प्राप्ति हुई। इसके अलावा इनके 2 पुत्र और थे जिसमें से एक का नाम सोमक था।

कर्ण (पात्र महाभारत)

कर्ण- सूर्यदेव एवं कुंती के पुत्र कर्ण का पालन-पोषण अधिरथ और राधा ने किया था। कर्ण को दानवीर कर्ण के नाम से भी जाना जाता है। कर्ण कवच एवं कुंडल पहने हुए पैदा हुए थे। इंद्र ने उनसे ये कवच और कुंडल दान में मांग लिए थे। छल करने के कारण बदले में इंद्र को अपना अमोघ अस्त्र देना पड़ा था। ‘अंग’ देश के राजा कर्ण की पहली पत्नी का नाम वृषाली था। वृषाली से उसको वृषसेन, सुषेण, वृषकेत नामक 3 पुत्र मिले। दूसरी सुप्रिया से चित्रसेन, सुशर्मा प्रसेन, भानुसेन नामक 3 पुत्र मिले। माना 14 मार्च 2024, गुरुवा जाता है कि सुप्रिया को ही पद्मावती और पुन्नुरुवी भी कहा जाता था।

विदुर (पात्र महाभारत)

विदुर- महर्षि अंगिरा, राजा मनु के बाद विदुर ने ही राज्य और धर्म संबंधी अपने सुंदर विचारों से ख्याति प्राप्त की थी। अम्बिका और अम्बालिका को नियोग कराते देखकर उनकी एक दासी की भी इच्छा हुई। तब वेदव्यास ने उससे भी नियोग किया जिसके फलस्वरूप विदुर की उत्पत्ति हुई। विदुर धृतराष्ट्र के मंत्री किंतु न्यायप्रियता के कारण पांडवों के हितैषी थे। विदुर को उनके पूर्व जन्म का धर्मराज कहा जाता है। जीवन के अंतिम क्षणों में इन्होंने वनवास ग्रहण कर लिया तथा वन में ही इनकी मृत्यु हुई।

संजय (पात्र महाभारत)

संजय- संजय के पिता बुनकर थे इसलिए उन्हें सूत पुत्र माना जाता था। उनके पिता का नाम गावल्यगण था। उन्होंने महर्षि वेदव्यास से दीक्षा लेकर ब्राह्मणत्व ग्रहण किया था अर्थात वे सूत से ब्राह्मण बन गए थे। वेदादि विद्याओं का अध्ययन करके वे धृतराष्ट्र की राजसभा के सम्मानित मंत्री भी बन गए थे। कहते हैं कि गीता का उपदेश दो लोगों ने सुना एक अर्जुन और दूसरा संजय। यहीं नहीं, देवताओं के लिए दुर्लभ विश्वरूप तथा चतुर्भुज रूप का दर्शन भी सिर्फ इन दो लोगों ने ही किया था। संजय हस्तिनापुर में बैठे हुए ही कुरुक्षेत्र में हो रहे युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को सुनाते हैं। महाभारत युद्ध के पश्चात अनेक वर्षों तक संजय युधिष्ठिर के राज्य में रहे। इसके पश्चात धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती के साथ उन्होंने भी संन्यास ले लिया था। बाद में धृतराष्ट्र की मृत्यु के बाद वे हिमालय चले गए, जहां से वे फिर कभी नहीं लौटे।

पांडु (पात्र महाभारत)

पांडु शांतनु और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की पहली पत्नी अम्बालिका से पांडु का जन्म हुआ। पांडु का विवाह कुंती और माद्री से हुआ। श्राप के चलते दोनों से ही उनको कोई पुत्र नहीं हुआ तब कुंती और माद्री ने मंत्रशक्ति के बल से देवताओं का आह्वान किया और 5 पुत्रों को जन्म दिया। कुंती ने विवाह पूर्व भी एक पुत्र को जन्म दिया था जिसका नाम कर्ण था। इस तरह दोनों के मिलाकर 6 पुत्र थे।

धृतराष्ट्र (पात्र महाभारत)

धृतराष्ट्र- शांतनु और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की दूसरी पत्नी अम्बिका से धृतराष्ट्र का जन्म हुआ। धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे। उनका विवाह गांधार प्रदेश की राजकुमारी गांधारी से हुआ। उनके दुर्योधन सहित 100 पुत्र और एक पुत्री थी। युयुत्सु भी उनका ही पुत्र था, जो एक दासी से जन्मा था।

बर्बरीक/खाटू श्याम (पात्र महाभारत)

बर्बरीक- बर्बरीक महान पांडव भीम के पुत्र घटोत्कच और नागकन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री ‘कामकंटकटा’ के उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है। बर्बरीक और घटोत्कच के बारे में कहा जाता है कि ये दोनों ही विशालकाय मानव थे। बर्बरीक के लिए 3 बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरव और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। यह जानकर भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में उनके सामने उपस्थित होकर उनसे दान में छलपूर्वक उनका शीश मांग लिया
बर्बरीक ने कृष्ण से प्रार्थना की कि वे अंत तक युद्ध देखना चाहते हैं, तब कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन मास की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया। भगवान ने उस शीश को अमृत से सींचकर सबसे ऊंची जगह पर रख दिया ताकि वे महाभारत युद्ध देख सकें। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर रख दिया गया, जहां से बर्बरीक संपूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे। आज उन्हें खाटू श्याम के नाम से जानते हैं

कृपाचार्य (पात्र महाभारत)

कृपाचार्य – हस्तिनापुर के ब्राह्मण गुरु और अश्वत्थामा के मामा। इनकी बहन ‘कृपि’ का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। महाभारत के युद्ध में कृपाचार्य बच गए थे, क्योंकि उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान था। कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे। वे आज भी जीवित हैं।

दुर्योधन (पात्र महाभारत)

दुर्योधन- कौरवों में ज्येष्ठ धृतराष्ट्र एवं गांधारी के 100 पुत्रों में सबसे बड़े दुर्योधन का शरीर वज्र के समान था, बस उसकी जंघा ही कमजोर थी। युद्ध के अंत में भीम ने उसकी जंघा उखाड़कर उसका वध कर दिया था। दुर्योधन के कर्ण की कभी नहीं सुनी। उसने हमेशा अपने मामा शकुनि की ही बातों पर ज्यादा ध्यान दिया। दुर्योधन का विवाह काम्बोज के राजा चन्द्रवर्मा की पुत्री भानुमति से हुआ था। दोनों के 2 संतानें हुई एक पुत्र लक्ष्मण था जिसे अभिमन्यु ने युद्ध में मार दिया था और पुत्री लक्ष्मणा जिसका विवाह कृष्ण के जामवंति से जन्मे पुत्र साम्ब से हुआ था।

दुःशासन (पात्र महाभारत)

दुःशासन- दुर्योधन का छोटा भाई, जो द्रौपदी को हस्तिनापुर राज्यसभा में बालों से पकड़कर लाया था। कुरुक्षेत्र युद्ध में भीम ने दुःशासन की छाती का रक्त पीकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की थी।

घटोत्कच (पात्र महाभारत)

घटोत्कच – राक्षस जाति की हिडिम्बा को पांडु पुत्र भीम से प्रेम हो गया था। उसने अपनी माया से सुंदर शरीर धरकर भीम से विवाह किया और बाद में वह अपने असली रूप में आ गई। हिडिम्बा और भीम का पुत्र घटोत्कच था। घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक था। द्रौपदी के शाप के कारण ही महाभारत के युद्ध में घटोत्कच कर्ण के हाथों मारा गया था।

शिखंडी (पात्र महाभारत)

शिखंडी- शिखंडी के कारण ही भीष्म का शरीर छलनी हो गया था। यह पूर्व जन्म में अम्बा नामक राजकुमारी था। शिखंडी को उसके पिता द्रुपद ने पुरुष की तरह पाला था तो स्वाभाविक है कि उसका विवाह किसी स्त्री से ही किया जाना चाहिए। ऐसा ही हुआ लेकिन शिखंडी की पत्नी को इस वास्तविकता का पता चला तो वह शिखंडी को छोड़ अपने पिता के घर चली गई। इसी शिखंडी को कृष्ण ने अपने रथ पर आसीन किया और अर्जुन के साथ भीष्म के सामने ला खड़ा किया। भीष्म ने कृष्ण पर युद्ध धर्म के विरुद्ध आचरण करने का आरोप लगाते हुए एक स्त्री पर वार करने से मना कर अपना धनुष नीचे रख दिया। यही समय था जबकि अर्जुन ने शिखंडी की आड़ में अपने बाणों से भीष्म का शरीर छलनी कर दिया।

महाभारत एक प्राचीन भारतीय महाकाव्य है जो हिन्दू पौराणिक कथाओं और साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह दुनिया के सबसे लंबे महाकाव्यों में से एक है, जिसमें 100,000 से अधिक श्लोक (पंक्तियाँ) हैं और यह 18 पर्वों (किताबों) में विभाजित है। महाभारत को महर्षि व्यास का रचना माना जाता है और इसे 8वीं और 4वीं सदी के बीच लिखा गया माना जाता है।

इस महाकाव्य में पांडवों और कौरवों के बीच हुई कुरुक्षेत्र युद्ध की कहानी है, जो हस्तिनापुर की राजसी गद्दी के लिए लड़ा गया था। मुख्य पात्रों में पांडव भाइयों (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, और सहदेव), उनकी पत्नी द्रौपदी, और उनके कौरव चचेरे भाइयों (जिनका नेतृत्व दुर्योधन ने किया) शामिल हैं।

महाभारत एक मात्र युद्ध कहानी नहीं है बल्कि यह विभिन्न दार्शनिक और नैतिक शिक्षाएं भी देता है जैसे कि भगवद गीता, जो कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच हुई वार्ता है। इसमें धर्म, कर्म और मानवीय संबंधों और समाज के पेचिदगी के विषयों पर चर्चा की गई है।

मुख्य कथा के अलावा, महाभारत में अनेक उपकथाएं (कहानियाँ) हैं जो नैतिकता, राजनीति, आध्यात्मिकता, और सामाजिक नियमों आदि के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करती हैं। यह एक गहन ज्ञान का खजाना है और बड़े समय से हिन्दी साहित्य, कला, और दर्शन को प्रभावित कर रहा है।


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